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आर्थिक भूगोल

श्रार्थिक भूगोल है अथवा जहाँ पानी तो काफी बरसता है किन्तु उसका बहाव ठीक न होने के कारण वह बह नहीं सकता । ऐसे स्थानों में वर्षा का पानी धुले हुए नमक के साथ पृथ्वी की तह में चला जाता है। पानी में नमक धुलकर अन्दर ही इकट्ठा हो जाता है। किन्तु जब अन्दर का पानी तेज धूप से भाप बनकर उड़ने लगता है तब नमक ऊपर आकर पृथ्वी पर जम जाता है । ऐसी भूमि खेती के काम की नहीं रहती। यह तो हम पहले ही कह आये हैं कि मिट्टी चट्टानों का वह चूरा है जिसमें वनस्पति का अंश यथेष्ट मिला होता है। इस मिट्टी का कार्य पर पौधा उगता है और अपनी जड़ों को इसमें घुसेड़ ___ कर अपने जीवित रहने के लिए आवश्यक तत्वों को प्राप्त करता है । मिट्टी ६ इंच से लेकर २ फीट तक मोटी होती है। मिट्टी में पौधे के लिए आवश्यक निम्नलिखित चार तत्व होते हैं। नत्रजन (Nitrogen) कैलसियम, फासफोरस और पोटैसियम । जिस भूमि में उन तत्वों की कमी हो जाती है उसकी उर्वरा शक्ति घट जाती है और उस पर खेती करने के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि खाद देकर उन तत्वों की कमी को पूरा कर दिया जावे। कुछ समय से मिट्टी के विशेषज्ञों का ध्यान भूमि के कटाव की ओर आकर्षित हुआ है। वास्तव में यह है भी बहुत भयंकर। भूमि का कटाव भूमि के कटाव से प्रति वर्ष देशों की अनन्त सम्पत्ति (Soil वहाकर समुद्रों में डाली जा रही है। हर एक देश में Erosion) लाखों एकड़ भूमि की उर्वरा मिट्टी पानी बहाकर समुद्र में डाल देता है। जहां वर्षा मनुष्य की बहुत बड़ी सहायक है वहां वह खतरनाक भी है । यदि वर्षा के जल का नियंत्रण न किया जाय तो वह क्रमशः भूमि को रेगिस्तान और खेती के अयोग्य बना देती है। आज जब कि भूमि के कटाव की समस्या प्रत्येक देश में भयंकर रूप से उठ खड़ी हुई है तो यह पूछा जाने लगा है कि हमारी भूमि क्या स्थायी उत्पत्ति का साधन है ? भय होने लगा है कि भूमि की उपजाऊ शक्ति कहीं इस प्रकार नष्ट न हो जाय । विशेषज्ञों का कहना है कि ऊपरी मिट्टी की गहराई ६ इंच से १ फिट तक होती है। यही मिट्टी खेत की जान होती है। भूमि की उत्पादन शक्ति इसी ६ इंच से १ फीट गहरी मिट्टी पर निर्भर रहती है। भूमि विशेषज्ञों का मत है कि यह ऊपरी मिट्टी ४०० वर्षों में एक इंच गहरी तैयार होती है। यही