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आर्थिक भूगोल

hor श्राषिक: भूगोल युद्ध के फलस्वरूप डंडी ( स्काटलैंड ) के लिनन के धंधे को रूस से सन मिलना बंद हो गया था। उस समय ईस्ट इंडिया कंपनी ने यहीं से-जूट को भेजना.शुरू कर दिया । तभी से भारतीय जाट की मांग बढ़ गई | भारतवर्ष में सर्व प्रथम सन् १८५५ में श्री आकलैंड महोदय ने सिरामपूर के निकट रिसरा में एक जट का कारखाना खोला जिसमें जूट की कताई होती थी । १८५६ ई. में कलकत्ते में जुट के कपड़े को तैयार करने के लिये एक कारखाना खोला गया। इसके उपरान्त जूट के कारखाने बहुत तेज़ी से स्थापित होने लगे । किन्तु भारतवर्ष के अधिकांश कारखाने बंगाल में वह बासबेरिमा होलीनगर- चंद्रनगर नेहाटी कानकिनास शामनगरः शमोराफुली वारकपुर शिरापपूर रिशरा टीटागट अगरपा हावड़ा, शिवपुर बलिमाघाट बोवरिया उलवेरिमा बजबज़ . विरंलापुर जूट मिलें भी कलकत्ते के उत्तर और दक्षिण में हुगली के दोनों भोर केन्द्रित हैं। बंगाल में मिले हैं जबकि मदरास में ४, उड़ीसा में ३ और संयुक्तप्रान्त में केवल एक: कारखाना: है। जट के कारखानों का बंगाल में केन्द्रित होने का मुख्य कारण यह है कि उत्तर और पूर्व बंगाल में जाकी पैदावार होती है ! मिले हुगली के दोनों किनारों पर स्थित हैं । जट नदियों अथवा सड़कों के द्वारा इन मिलों में लाया जाता है ! साथ ही तैयार: जूट का सामान :नावों द्वारा कलकत्ते को आसानी से भेज दिया जाता है। यही नहीं, इस- जूट सत्र के समीप ही कोयला मिलने में कम व्यय होता है....!"