पृष्ठ:आर्थिक भूगोल.djvu/५२८

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उधोग-धंधे

उद्योग-धंधे ५१७ शीशे के धंधे के लिए अच्छा- रेत और कोयला अत्यन्त आवश्यक है। भारतवर्ष में शीशा बनाने योग्य रेत की कमी नहीं है। बंगाल की राजमहल पहाड़ियों में, नैनी ( इलाहाबाद ) के पास लोघरा और बोरगढ़ में. विंध्या के रेतीले पत्थरों को पीस कर, सानखेदा (बड़ौदा ) के रेतीली पत्थरों तथा साबरमती नदी से, बीकानेर, जयपूर में सवाई माधोपूर, तथा पंजाब में होशियार पूर जिलों से शीशा बनाने योग्य रेत मिलता है । नैनी के पास पाया जाने वाला रेत अधिकांश कारखानों में काम आता है । सोडा तथा ऐश ( Soda. Ash) बाहर से मँगाया जाता है। भारतवर्ष में अधिकांश कारखाने सिंघ गंगा के मैदान में स्थित हैं। बात यह है कि यद्यपि भारतवर्ष में मुख्य कच्चा माल (Raw material ) मिलता है किन्तु कठिनाई इस बात की है कि कारखाने कहां खड़े किये जायें। क्योंकि सब वस्तुयें एक स्थान में नहीं मिलती। अतएव सिंघ गंगा में देश के ५५ कारखानों में से ४५ कारखाने स्थित हैं। इन मैदानों में रेलों का एक जाल सा विछा हुआ है जिससे सब सामान को इकट्ठा करने में सुविधा होती है। अधिकांश शीशे के कारखाने संयुक्तप्रान्त में हैं। फीरोजाबाद इस धंधे का सबसे बड़ा केन्द्र है। इसके अतिरिक्त वम्बई, जबलपूर, लाहौर, अम्बाला, नैनी, इलाहाबाद, बहजोई कलकत्ता में भी बड़े बड़े कारखाने हैं। यद्यपि देश में आधुनिक ढंग के कारखाने स्थापित हो गये हैं फिर भी विदेशों से मुख्यतः योरोप और जापान से भारत में सवा करोड़ रुपये के लगभग का सामान पाता है। यहाँ के कारखाने अधिकतर चिमनी, बोतल, ग्लास, छोटे छोटे जार, दवाते, तशतरियों और प्यालियां बनाते हैं। अभी तक शीट ग्लास ( Sheet glass ) और प्लेट ग्लास बहुत कम तैयार होता हैr बड़े बड़े कारखानों के अतिरिक्त भारतवर्ष में पुराने ढंग से भी शीशे का सामान तैयार किया जाता है। अधिकतर यह घटिया चीजें होती हैं। नदियों के रेत तपा रेह से यह तैयार किया जाता है। इस कारण अच्छा औरः साफ नहीं होता। संयुक्तप्रान्त में फीरोजाबाद तथा दक्षिण में बेलगाँव इसके मुख्य केन्द्र हैं। फीरोजाबाद में चूड़ियां बहुत बनती हैं। सीमेंट का धंधा भी कुछ ही वर्षों में यहाँ उन्नवि कर गया है। १९१४. १८ के प्रथम योरोपीय महायुद्ध के समय भारतवर्ष में सीमेंट( Cement बहुत कम सीमेंट बनाया जाता था । अधिकांश सीमेंट | Industry) विदेशों से आता था। किन्तु अब बहुत थोड़ा सीमेंट विदेशों से आता है। सम्भावना इसी बात की है कि शीघ्र ही भारतवर्ष सीमेंट की दृष्टि से भी स्वावलम्बी हो जायेगा। ८०. . . -