पृष्ठ:आर्थिक भूगोल.djvu/५३

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तीसरी परिच्छेद
जलवायु तथा प्राकृतिक वनस्पति

तीसरा परिच्छेद । जलवायु तथा प्राकृतिक वनस्पति जलवायु किसी प्रदेश के वर्ष भर के मौसम को कहते हैं। मनुष्य समाज के आर्थिक विकास, जनसंख्या, तथा अन्य हलचलों जलवायु पर जलवायु का गहरा प्रभाव पड़ता है। जलवायु के अन्तर्गत गरमी (Temperature ) दवाव ( Pressure ) वायु का बहाव, धूप, नादलों का होना, वर्षा इत्यादि सभी बातें आ जाती हैं। भूमि पर गरमी अधिक होगी या कम, यह तीन बातों पर निर्भर है १) अक्षांश ( Latitudes ),(२) भूमि की तापक्रम ऊँचाई और (३) समुद्र से दूरी। सूर्य की किरणों (Temperature) पृथ्वी पर लहरों की भांति आती हैं और जब वे पृथ्वी के पास पहुँचती हैं तो पृथ्वी के समीप की वायु किरणों को अपने मार्ग से हटा देती है, किन्तु फिर भी अधिकांश किरणें उस वायु को भेद कर पृथ्वी पर गिरती हैं। वायु सूर्य की बहुत कम गरमी को ले पाती है। जिस कोण ( Angle ) से सूर्य की किरणें पृथ्वी के किसी हिस्से पर गिरती हैं उस पर गरमी का कम ज़्यादा होना निर्भर रहता है। जिस भूमि पर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं उस पर अधिक किरणों के पड़ने के कारण गरमी अधिक पड़ती है और जिस प्रदेश पर किरणों तिरी होती है वहाँ किरयों के कम होने के कारया गरमी कम पड़ती है। जर किरणं सीधी पड़ती है तो वायु में उनकी गरमी कम नष्ट होती है और जब किरण तिरछी पड़ती है तो उनकी अपेक्षाकृति अधिक गरमी वायु में नाट हो जाती है। उदाहरण के लिए " क ख ग घ" धेरे को हम पृथ्वी मान लेते है और "चर लव" घेरे को वायु की निचली घनी तह, तपा. फ.व म" को वायु को ऊपरी हल्की तह मानते हैं। अब"त"