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आर्थिक भूगोल

. -५२० प्राधिक भूगोल में लकड़ी की लुब्दी मिलाई जाती है । बढ़िया काग़ज़ बनाने के लिये कारखाने विदेशों से लकड़ी की लुब्दी मँगाते हैं और उससे काग़ज़ तैयार करते हैं। भारतवर्ष में पढ़ा तो बहुत कम उत्पन्न होता है। इस समय देश में १४ पेपर मिल कागज़ तैयार कर रही हैं परंतु फिर भी भारतवर्ष में जितना कागज़ तैयार होता है उसका दुगने से अधिक कागज़ विदेशों से मँगाना पड़ता है। अधिकांश विदेशों से आने वाला काग़ज़ समाचारपत्रों तथा पुस्तकों की छपाई के काम प्राता है। भारतवर्ष में साधरणतया एक करोड़ का काग़ज़ विदेशों से आता है। १९३६ के योरोपीय महायुद्ध के कारण बाहर से काग़ज़ का पाना प्रायः बंद हो गया। इस कारण देश की मिलों को अपनी उत्पत्ति को बढ़ाने का अपूर्व अवसर मिला। सन् १९३८ में भारतवर्ष के कारखानों ने ६० हजार टन काग़ज़ तैयार किया । १६३६ के योरोपीय महायुद्ध के प्रारम्भ हो जाने से कागज का विदेशों से आयात कम हो गया है और भारतीय कारखानों ने अपनी उत्पत्ति को बढ़ा दिया है । १६३७ में संसार भर में दो करोड़ टन के लगभग काग़ज़ और ६० लाख टन बोर्ड तैयार हुआ था । अब मध्य प्रान्त में एक नई कागन की मिल बन रही है। इसमें अखबारी कागज ( newsprint ) बनेगा । अभी तक भारतवर्ष में ( newsprint ) नहीं बनता है। भारतवर्ष में बहुत प्राचीन काल से कुटीर उद्योग-धंधे महत्वपूर्ण रहे हैं और आज भी कुटीर उद्योग-धन्धे नष्ट नहीं हो गये हैं। कुटीर उद्योग-धंधे गांवो में कुटीर उद्योग-धन्धे आज भी जीवित दशा में (Cottage) हैं । भारतवर्ष में बड़े बड़े कारखाने केवल बड़े बड़े Industry ) प्रौद्योगिक केन्द्रों और नगरों में ही दृष्टिगोचर होते हैं गांवों में आज भी कुटीर उद्योग-धन्ध प्रचलित हैं। कुटीर उद्योग-धंधे किसी-स्थान विशेष पर केन्द्रित नहीं हैं वे देश भर में बिखरे हुये हैं । कुछ जातियाँ विशेष उनं धंधों को करती हैं। बेटा बाप से काम सीख लेता है, वही पुराने ढंग से काम होता है, औज़ार बहुत साधारण होते हैं और अधिकतर गांवों में ही तैयार हो जाते हैं। कच्चा माल भी गांवों में ही उत्पन्न होता है और तैयार माल की भी खपत गाँवों में ही होती है। कुटीर उद्योग-धंधे के साथ साथ कारीगर खेती भी करते हैं। जब खेती से अवकाश मिलता है तो धंधे के द्वारा कुछ कमा लेते हैं। इन - धंधों में कोई सुधार नहीं हुआ है। वही पुराने ढंग की डिजाइन यह लोग तैयार करते हैं और वही पुराने औज़ारों को काम में लाते हैं। . ..