पृष्ठ:आर्थिक भूगोल.djvu/५५३

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तेइसवां परिच्छेद
भारत का व्यापार (Trade)

. तेईसा परिच्छेद भारत का व्यापार (Trade) भारतवर्ष एक कृषि प्रधान देश है । इस कारण उसके व्यापार में कृषि जन्य पदार्थों की अधिकता होना स्वामाविक ही व्यापार (Trade) है। भारत का निर्यात व्यापार अधिकतर खेती की पैदावार कपास, जूट तपो तिलहन इत्यादि तक ही सीमित है। व्यापार के खेती से सम्बंधित होने के कारण जब कभी खेती को हानि पहुँच जाती है तो व्यापार को बहुत हानि पहुँचती है और निर्यात बहुत कम होता है। जो देश कि कृषि प्रधान देश हो उसके व्यापार में भारी पदार्थों का रहना स्वाभाविक ही है और मारतवर्ष में माल ढोने के साधनों की बहुत कमी है। यह कमी देश के व्यापार की उन्नित में बाधक होती है। जब से देश में रेलों और सड़कों का विस्तार हुआ है तथा स्वेज नहर खुली है तब से भारतवर्ष . का विदेशी व्यापार बढ़ गया है। इन सुविधाओं के फल स्वरूप ही भारतवर्ष की पैदावार अन्य देशों को पहुँच पाती है और भारतवर्ष अन्य देशों से तैयार माल मँगाता है। भारतवर्ष एक निधन देश है । इस कारण अन्य देशों की तुलना में उसका विदेशी व्यापार बहुत कम है । १९३८ में भारतवर्ष से १६२३०००,००० रु. बाहर भेजा १,५०,१०,००,००० रु० का सामान देश में बाहर से श्राया। भारतवर्ष में लगभग ४० करोड़ मनुष्य निवास करते हैं परन्तु इसका विदेशी व्यापार जापान जैसे छोटे देश की तुलना में कम है। ब्रिटेन का विदेशी व्यापार भारतवर्ष से कई गुना अधिक है। इसका मुख्य कारण यह है कि भारतवर्ष में सम्पत्ति की उत्पत्ति कम है। इस कारण विदेशी व्यापार भी बहुत कम है। भारतवर्ष की खेती तथा उद्योग-धन्धे सभी हीन दशा में हैं। इस कारण उत्पत्ति कम है और जब तक हम अपनी उत्पत्ति को नहीं बढ़ा सकते तब तक हम बाहर से भी अधिक माल कैसे मँगा सकते हैं। व्यापार तो केवल वस्तुओं का परिवर्तन मात्र है। यद्यपि भारत का बान्तरिक व्यापार विदेशी व्यापार से दस गुना है फिर भी अन्य देशों की तुलना में यह भी कम है। क्योंकि अधिकांश वस्तुयें गांव वाले अपने उपयोग के लिए स्वयं उत्पन्न कर लेते हैं। ... का सामान गया और