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आर्थिक भूगोल

आर्थिक भूगोल लाभ होते हैं और कुछ अप्रत्यक्ष लाभ होते हैं जो बहुत ही महत्व. १-पहाड़ों के ढालों पर खड़े हुए जंगलों को काट डालने से नीचे बसे हुए गांवों तथा नगरों का जीवन ख़तरे में पड़ पनों से अप्रत्यक्ष जाता है। जब वर्षा का जल पहाड़ के ढालों पर वन लाभ न होने के कारण स्वच्छंद गति से बहता है तो वह (Indirect- चट्टानों और भूमि को काटता है मिट्टी का कटाव advantages (erosion ) करता है जिससे बहुत सा प्रदेश of Forests) नष्ट हो जाता है उसमें कुछ भी उत्पन्न नहीं हो सकता। यही नहीं वनों के वृक्ष पहाड़ी प्रदेश में नदी को अपनी धारा में बहने के लिए विवश कर देते हैं। नदी का जल वनों के कारण नियंत्रण में रहता है और जब नदी पहाड़ी प्रदेश में नियंत्रण में रहना सीख लेती है तो मैदानों में भी वह सीधी बहती है। किन्तु पहाड़ों पर खड़े हुए वनों को काट देने का परिणाम यह होता है कि नदियों में भीषण बाढ़ बातो है और नीचे मैदानों में बसने वाली जनसंख्या का सत्यानाश कर देती है। चीन वासियों ने वनों को काट डालने की जो भयंकर भूल की थी उसका मूल्य वे अपने विनाश से आज चुकाते हैं। प्रतिवर्ष वहाँ को प्रमुख नदियों हांगहो तथा यंग्टिसीक्यांग इत्यादि में भयंकर बाढ़ आती है और लाखों घर नष्ट हो जाते हैं। यही नहीं पहाड़ों के ढालों पर खड़े हुए वनों के नष्ट हो जाने से उपजाऊ घाटिया कंकड़ पत्थर से पट जाती हैं और वहाँ की पैदावार नष्ट हो जाती है। ऐसी दशा में मनुष्य असहाय हो जाता है। खेती का धंधा चौपट हो जाता है और वह प्रदेश वीरान हो जाता है। २ वनों से वर्षा अधिक तथा निश्चित होता है। वनस्पति पानी भरे वादलों को अपनी ओर खींचती है। पहले नील नदी के डेल्टा में वर्ष में केवल ६ वर्षा के दिन होते थे किन्तु वहाँ लाखों की संख्या में वृक्ष लगाये गए और अब वहाँ वर्ष में ४० दिन वर्षा के होते हैं। जिन देशों में वनों को बहुत अधिक काट डाला गया वही वालों का अनुभव है कि वर्षा कम और अनिश्चित हो गई। भारतवर्ष के लोगों का भी यही अनुभव है। वनों के कट जाने से वहां वर्षा कम और अधिक अनिश्चित हो गई। ३-~यन जलवायु और विशेषकर तापक्रम को विशेष रूप से प्रभावित करते हैं। वृक्ष प्रति दिन बहुत सा जल पत्तियों द्वारा वायु को देते रहते हैं इस