पृष्ठ:आलमगीर.djvu/११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पानगाह बहाँ फीसनामे में दो दिग्गय दापीये। एक पनाम पा 'भुधार' और दूमरे च 'सूरत सन्दर'। १८ मई पन् १५५नि प्रमात में बादशाह ने इन बातों सदियों सगाई वा मायामन पागप में बमुना 'समतल तर पर थिमा रोमिय दिनों से परे हुए दे दानों हामी पिके से उस भयो के नीचे, पापा में बादणा प्रयापन पेसा पा प्रापत में मिल गए । दारियों में सहमया रसमे उस्मक बाहया गमता से यहाँ पहुँगा । उठके तीनों बड़े पुत्र उतसे मच पदम मागे घोड़े पर सवार सो पे उरमुवावरा चौरंगजेष हापिरो रे पहुत निम पहुँन येर बाद दोनों हाथी एक दूसरे को धारपर पीछेटे । 'पत समोर ने माम गमा । अपने प्रतिएको पात न पार 'मुपानी ने पास बरे औरंगजेब पर हमला र दिपा । उस समय पोरगर की प्रारणा बोरा पप की पी। परन्तु पर निर माहा पात्रादा पापी से नही ग्रा, अपने पारे प्रेमाते रही न्या और परसर पार उसने मिररीक मागे एका हामी के सिर पर माके वार रिया। मोग पर पर उपर मागने मगे। बापी कारपने के लिये पयसे कोई गए, पर दाधी बदना ही पता प्रापा । उसने अपने दोनो दोवों की बर से मोरंग। पारेको गिरा दिया। परन्तु बहादुर शास्त्रारा ती से उठता मोर नसबार मीच र रापी पर पार करने लगा। इसी समय उसका भाई शुबा पोड़ाषा पर पााँ भान पहुँचा और धामी पर माहे से चोट परमे जगा। महापब बदि भी इस मा गए और ापी पर पिठ पो। फिर मी पी पीछे न ाय। इसी समय 'सूरव गुमर' मी ममता हुमा पा गया। मामी और तलमाये से