पृष्ठ:आलमगीर.djvu/१४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दीपपाई १२५ गहरा गुशायी हो पाता था। उसमाप नियक्षा पा और उसके माम अपरों पर पषज्ञ दन्ठपक्किी पहार मन पागल कर देती थी। उस कमर में एक कारमीरी शान पो थी। मुराहीदार गर्दन में बोनो मोवियों की माला और मुब मुसाल में बाक पहुँपिर्षों पड़ी थी। नीचे बो सलवार पाने पीपा गुनाबी बाटन श्री पी-बिस पर सलमे सितारे का बहुत उमदा भ्रम हो पाया। कमरा मुगग्य से महरू पापा और पाँधे मधुर ऐरानी दिखी चोरनी प्रधानन्द दे रही थी। इसी पारे की मांति परत सुन्दरी का नाम हीगवाई था। उसे पार औरंगदेव का मुनापन एरो गया था । सदैव म गम्भीर, पुर और मकार मौरंग इस पपला मारे सामने पाकर दीवाना हो पावा पा और प्यासी रतनों से रेसवा नहीं पाता पा। औरंगको पीरे धीरे कमरे में प्रावे देत मुधरी बिमलिता पर पड़ी। स-सवे पर पर सोर गई। उसे अपने बोर से सपी देश भोरंगजेब ने मुसयरमा-"इस कदर सो सिटी से पान " "बार बार मी मही| पाप मी मा पास है, ऐसी भुपरेपो पाते हैं पैसे विशी पोपममे चलती है।बाद। गामीई पासtm पण मरदी में उस करिह गगहमार श्रे गम्मीरखा ना हो गई। उसने हम करा- "या परेको पाने की चाबी, पापा पा!' मोरंगजेब मेसपकार मुदीमर रोष निगा। रोनों पास बैठ गए। परम् पोरंगबारे रेखार या फिर पड़ी। मवज्ञान ममने पर भी औरंगयेर भी रेस दिपा । उसनेमा- 'कमा रही पी दिखबर" "मैं सोच पी थी।"