पृष्ठ:आलमगीर.djvu/१४६

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मग का उदय उन मावा पेदित थे। उनके कमचारी दानी परेवकी देखरेख में पूना में अपनी माता के साथ रहते थे। पति उदा के गरम बीमी बाई में पियो अन्तर्मुली हो गई थी और उनी सामाविक पार्मिक भावनाएं उमर पाई पी, बिनम शिवायो पर कापी प्रमाण पहा । वे प्रदेते थे। साथ लेडने रे माईनमान नपा। इस एमापन मे माता-पुत्र में एक दूसरे के प्रति समिश्र ला दिया और में माता देवी की मावि पूषने सगे। तापही स्वावलम्बी मी हो गए, और बिना ही रिसी की सहायता के अपने संगी-तापी मयठा ताणों को बोहर अपना रस बना लिया। रामबाप पोरे पर पद पर पनों और पर्यवों में सापियों सहित पकर जगापामते, उनके संगी-साधी मारली बाजा। प्रभर उमे कठार मोर परिश्रमी बीवन का प्रमास हो गया और स्पषता से प्यार हो गया। मुखलमानों में अपीनवा में पासवा करने से मेरा करने लगे। बिन दिनों पोरगये बहावगुलारे का वार था, शिवानी दक्षिण में उपस पाने का असर मिला। बीजापुर का सुरवात मुहम्मद आदिलणार नए बीमार पड़ा और दस साल रोग-शा पर पहागा। हम इस पो ता उसी रायमरपा नही हो दीदी पी पिता शिवाजी मे पूय शाम उटाया। उसने परराभ पिता परिवार से चीन शिवा व उसे दो साल माप सगे। इसके बाद ही उसमे पनगद प विधा बनाया। पीये उसने बीमापुर बातों से पोरगना का मो चीन लिपा । और साथ ही अपने पिता की पश्चिमी भागीर मी मागों पे परमे प्रवियर में कर लिया। इसी बीच पारी को श्रापुर सेनानायक मुसाको मे कर लिया और उनकी बारी सेना और बापार समर लिया। समय मुखनवरपिभी भर मिले में बियो नामक