पृष्ठ:आलमगीर.djvu/१४९

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मालमगीर पसरता पा बिटी गिनती बीमापुर के प्रमुख सरपये में थी। पासपोर मिशार सम्पन्न तोपर नयहरपनाम भी। शिषाची में पोदी प्रयास से इन दोनों नगरों में अधिकतर सिपा । वो से उमें मार पन और मापारिक सामग्री हाप पगो । शिवाधीने त्याची और मिस्त्री को अपनी बहसेना और पाये प्रएका बना दिया। इस प्रभर मुगल व रममगार अप-ठापो दक्षिण में शिवानी मराठा यमीनीवरपापित हुई। २८ औरगजेब का कूटधाम पाते औरंगबनवारवाद सरीता मोहा। उसमें लिला पा- "मारेल से हमें तगती है और हम चाहते किम दरम्मी- मान अपमे मुसलाम करो-हमने सुना है तुम अपार पै मरती रहो और अपने दर से मागरे और इस करना पाते हो। माय दुस्मीकि राम अपने सदर ही में मुप्रेम पोपोर न से रमे। ना भैग मरवी करने विशात जरूरत नहीं। हमने शारे गोशाक और शाह बीमापुर मधा की। बस, हम नहीं पाते म ई ऐगी हर को हो उसके मिजारे औरंगदेव की माटी में बल पड़े और रसने अप होठ सिको, फिर उसमे दूख्य बा । तरी मी सीमान शारपदी रोगनपारा श्री पी। उसमें बिताया- मेरेयोपदर मुझे सम्मीरम सम्वुरस्म हगे। समारी शिवाय स्वायत समहोपापापा अपने टपई, हारष्ठानबी साम पारसार क्षामत ने कोमामा दाग औरत ने