पृष्ठ:आलमगीर.djvu/१५५

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18 पालमगीर पते। उसे पर भी समा मा बि पिना ऐठा पिए सत्र पिप में अपनी जाना अपम फरमा पिसम मुपनि नी । के मिा- अगर हमारी मदद करेगा तो मैं पारा मवार नए रिस्सेीप बम हमेशा उसे रंगे।" इसके बाद मौरंग में और भी जरूरी पावे ठठे समाई। पर कहा-'मगर ममा परमा पर प्रो अपिता और पर रना होगा। मितवम उधारी बन्दोबस्त कर होगे। पार र उसने अपना बहाव कमरपद उपधी कमर में पांच रिय। प्रमौरों ने सरका-"पाप पवमीनान रखिए । सेफ का पर वायरी सिरमत में पहुँचाया।" र शाम से या गया । औरयदेव उस समय तक उसे देखता था, माता उसकी धेिरे में गाया म हो गई। इसके बाद उठने रखा। एक पर मोमा समस्या का समा! पोरयर मे दमी नबर से उसे रेसरमा-'मुबारक, में पोशी दोर पर भी इस मामी पीयेबाना होगा और इसकी तमाम हरकतो रोपामे से पेश्वर दीनाना होगा। उसमे एकबोमो खी पेक्षी भरोसे मरी पी, उसमेसी पर रक। मुबारक बिना पशम पो बसमा गया औरणारे होठों पर मुस्कान एक पीय रेखा भाई और बह धीरे-धीरे छोपवा मा मास पसामपा। शिकार पारधारा मुगरपस्य एक सिर और मदर युवा पारमी पा। गभर, उस, पराब और रमती इन पार पीवों में इसकी जान भी। महापौर परामे मा मुगह गमामा भर में एक पाग