पृष्ठ:आलमगीर.djvu/१६

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वारों को दानवोपे धाम में लाई गई, और साइनों तक सन्द मादी गई तमा लाईभ पानी मुखाने के प्रयास किए गए। 'चास जीना' गाकर दुर्यों पर भदने की पेश की गई। परन्तु ये समी उपम म्पर्य हुए और दो महीने बाद शाही न पीये फिर माई। नसंदेह मा पोरंगको प्रसफलता थी और बादसार इस पर असदर मी प्रा । परन्तु इस प्रसफलता का पारस पित पुर मीति नी थी। भधार से प्रमुख लोट पाने पर मोरंग को दूसरी बार सन् १६५२ में ददिरा का स्पेरार बनाया गया। सन् १६४ में उसने र दक्षिण भी स्पेदारी छोड़ी थी तब से हा शासन-परथा बहुत दी लव यो । यपपि इन दरों में शान्ति बनी रही। णि बहुत-सी उपबाज बमीन परवी रासर जगमों में बदल गई। दिवानोपा कम हो गई। उनकी भार्षिक रिपति बिगड़ गई। इससे सूत्रों की माप मी कम हो गई। वहाँ भी पूरी बस्ती नही हुई, पर शादी समाने का बहुत मन ददिपी सूबो पर सर्व वा या। सम्पूर्ण दिसी सूदा की वार्षिक प्राय तीन राम बासठ साल पर पी, पर पसल सा था एक बरोर पापों से भी कम । इसलिए इन प्रान्तों में मुम्पबस्पा पनाए रसनेप्रम सममियाशी प्राम्बा प्राय सबनी पाती पी। भौरमपददिए पहुँप पर से प्रपम इसठिन भाषिक परिपालिका आमना करना पड़ा। उठे सेवीपाती मुपाग्ने उसे पदाने और रिमानों की दया को सुपारना था, पर इसके सिमे पर्यात पन पारिए पा। निम्तर पुरी के भरण प्राम्दों में भराममा फैली नई थी, और देश उपर गया था। परालो से मी प्रतिमा मेयान्न माप प्रमपरिपतवा।