पृष्ठ:आलमगीर.djvu/१६८

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रत १६ "नाही, मारी, पान एक पर बिसे ये लोग गौर से पाये। भोर पोर्चुगीच बिसे 'वीरह' पाते हैं। इससे होठ सुन हो पाते हैं, पौर से मुरादू भामे सगी, बनोग पान के साथ वापत मीना "वम्या नावे सा पे पाइप मही पीते " "नही मोशिप, एका पीते || मार गार बिम्स्वान में पहली बार पाए ।" "वमी, या पान दिनुस्थान में सा सोग साते है, भाप देलेंगे किदिनुस्खान पापणावापान साने भाव, और यह पूरव भामरगाह बिकी मारी मामदनी, पापणा मे बड़ी बेगम परेव पानरान रेससिए दे दिया है।" "मा पान खाने बानी वना पारा होता" "मशिप, या एक तापीबीपीम और भाप कि हियु स्वान में नए पाए है, मैं पाप नेक नतीत दूंगा किया रिस्तानी दोस्त प्रापपान पेश करे वो कमी इन्भर न करना। परना इसे पह ऐसी मामी और परवमोबी समझेगा कि फिर कभी मापसे बात भी न करेमा " "यह दोपही अमीषबात है।" “बेराक, पान जाने की भारत हो पाती है, और हिन्दुस्तानी भौरवों प्रमही सिपान साना और गप्पे माना है। एक मिनिर मी बिना पान मुंह में दिए नहीं य तकनी " विना पर बापूदा सिक झाम्तीठो ने समा। 5 ठारकर उसनेमा- "माप पान साना पारेको मैं पेरामसवाय पर दोस्व पास बिसको पानी पदिवा दूधन।" वाय अत्री मे उरतु पर प्रा-बल, पार मोथिए, सिखाए पान, पारितुस्तान की नई वाली सबसे परिसे में