पृष्ठ:आलमगीर.djvu/१७७

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मानमवीर प्रेमात ती गर्व समझा-बुध र दया कुछ बुने हुए बार रेफर भाये मुया के पास मेवरिया। ससने उसकेप सूरत पेपर पर मुरार प्रेमात ती मुबारकबारियों दी तथा मौरगमता के साप बो प्रबाही गई पी और बो -पार हुए थे पा मी उठये बासा मेने। ता उसमे पाया मे] तब ताप उसने एकलन मी नपरको शिला, पिसमें उसने शिक्षा पा-" मैं एकही फौज सयारी में और ऐसत भी मेरे पास बेशुमार है। पोबर उमपए-परवारे वाही मेरी पकी पाठपौवदो पुती, और प्रम पानपुर भागरे की तरफ बढ़ने में मेरी तरफ अन् मी देर मा 14, भाप से तय र विपाप भी इष में देर न करें और दाना जरारोको एक साप मिटाने के लिए ओ बगा क्य परे मुफेर सबर गत श्रीधर में रकम समाना मिलने से मुराद बहुल निगम हो गया पा। उठने को प्राणा मरे मुरने से पे, पैमाने लगे। परन्त मन पौरपये पर पत्र पद र और मीरधामा की अमर परवा पाया और वस्तार से मर गा। बोपन वीर से उसे मिला था-पास तो ठनहरे सिपाहियों ने वनस्सार पारने ही में सो गा पा-भिनेगा उस ममि पर गय या अप उसने इस पर उत्पादित होकर-पूरव एप पर पेश पास दिला और परमारों की गापा से, को उनी सेना में पे- दुर्गपीसो रंग से सदा रिण । बिससे दुर्ग में पायार फेत मां और दुर्गा प्रविवि व गरम में भा गा। मीरवाण मे मी ठर बल पड़ी पारी रिहाई। साप ही उसने पानी पनि पाईस्वी ५ साल पर गया कर लिए। परत दुर्गमोठा पर मुराद पुन मवाना है। उसका शैतमा बढ़ गया और उसका नाम मी प्रसिर रोगा। सिपातीमा भारी सेना में महा दोने सगे। नौसयापा दो निरन्तर