पृष्ठ:आलमगीर.djvu/१९०

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मुवासिौर और उसकी प्रधान बेगम दिलरस बानू प्राया पीया रवी पी। औरष पुगानपुर को दिएर समझता था और उसने पी एक निधारी मोहरेशर रसोरा पा, मिसके अमीन एपीनी फोर मीश्री। उसे इस पत की एक रिरात पीक उपर से रविष मामे वाले प्रत्येक प्रति घोर उसके सामान सूप हारपानी से बैंचीबाप और मसे हम बात की चिता मिलती है। कसे के परगवस में ही दो नदी पी उस बल नगर निपासियों ने पानी से उपलबो पाता था । बस्ती में पारसी और भारमीनियन सौरागर बहुत थे। यहाँ फसो पापी मरमार रही पी और फसल में घाम तो बना होता था कि बाधार परतापा। बोपविरित नीबू, मारंगो, वय, अंगर मी व दवे थे। सम्मी तरकारिनों की पोंकमी न पी। बंगा में वापदार की मौन पी। बंगाल में दिर, गीगा, जंगली , मोर, पाया, पवर मावि शिकारों की मरमार थी। परन्तु पोर गमो मम मी गाव पापा भारमियों का मामा करना संमय तीनपा। पे मोग वीर मान और माने बद से बेठ सिपर भी वसाय में घूमते हीयते। बनाइन प रवा [प्रा और पुरहानपुर मा पमन्न । दुहानपुर में उसने नदी के किनारे पर अपनी बावनी सी और प्रेमी पभन उतारने लगा। परन्तु उसम्र मस्त विचार माया कि मीरवामा-मुरार सम्पेमाचार ले प्रावे । और सम वो अपने को फकीर पवा सपा सरर में भी और भी मावि रहता था। यह पगई पर सवा, मदुत सारा मोचन करवा पा टोपि तीता मा कुरमान बिना रखा। बाहिरा बार से पीर उसके पास भावे रते, यह उन भातिर पर और पड़ी पाप मत प्रा । पर सप पूषा भार तो इनमें से बहुत से उतरे पास्त होते थे और दूर-पूरी खारेसार देवे पते ।।