पृष्ठ:आलमगीर.djvu/१९३

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प्राशमगीर लोग इस मेदो नहीं मानते थे, उसे एक प्रौतिना सममले, उसे राधा मम पात से फऔर रात सेमे उसके पास दूर-दूर से भावे । उन दिनो की सरबह बड़ी प्राप मगत होती पौ। मोग ठमें मनमानी भी देते-उनकी इसव परते और उमें मान-मनीया सिमाते । न फ में पो ही सम्पेभीर होवे थे, अधिकतर मुस्टो पूर्व ही हाते । मौरसाने को सप पूर्व पा मोर दिना परत कमी एक पेशा किसी को नहीं देता था, महा इन मुटाने के चंगुल में क्यों फंसता । उसे अनेक बार इन फसमी फकीरों की पासा त्रिों की सूपना मित्र पुत्री थी और उसमे इस बार ठमें सवा देने अपूपहरारा पर लिया। उसमे प्राधाकि सब पीरों को बुयानपुर में किया चाप घोर उनको मोक्न, धन और नपीन पा प्रदान किए बाएँ। या भाग सुनते ही पूर-चूर * पर इन अबतर से शाम उठाने बुरहानपुर में प्रा हटे । परोए प्रचा-साता मेला लग गया। मानसम्मा में पीर मा गए। औरतब मे उन मोबन लिमा र मान दी कि उनके पुराने बम उतार सिए पारं और नए बम उपानाए बा । प्रकीरों इस बात पता चहा पोये बरे पराए पोर विधाने बगे कि "ना, नी, हम हमी कला में मरेंगे। हमले महीं उतारेगे । पल को पाप पर इन पूत याबारे के सामने न मास म्पर्ष पौ। ठमेरे पुगने पर उतार कर नए मम पामा दिए गए। परन्तुबान पुराने पावसायीनी गई पो हम एगरिकों में मबह शुमार प्रशपियों, अपितु गत से बाहर मी सिते हुए मिले। इस मुफ्त के माश पाइर औरङ्गजेब बहुत पुरापा। इसी उमप एक पो गीच मापारी ने औरणयेगो एक प्रलय श्रीमती मोती रिसाया और प्रौरान उन के पार मोती परीदमे पराए पि।