पृष्ठ:आलमगीर.djvu/१९७

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मालमगीर में है, इसलिए उसके मन में शुम ही यही देने कमी-मी चाहो उठती थी। इसी से उसने मियबारे गुम गति से सममा दिया था किये गुबा से करें नहीं पी मौरा दें, और धीरण से समय की प्रतीक्षा करने को समझा है। परम्त महेमान सिह दापन पुत्र या । वागमनीवि से मनमान को पारी, पादणारे शिप्रेय से उसमकोय मी नही मिलन था। फिर उसे पारा ने गुप्त दिवाबत मी थी कि मिर्वायमा चारे रितनी भी लीपापोती, तुम शुचाग्रे पिकुलदी पीस गहना । बिससे इस रमन से हमेशा के लिए रेपिन होगा। पोपले पाना और उसकी तमाम पोम को पीर गलना । इस प्रकार से या शाही सेना मिम मिन विचारों और इगदो तरपारोबप पा रही पी। शाहमारा अनुभवाम्म होने पर मी स्वामी प्य । मिनारामा और रिरका अनुभवी और भाग्य बाते हुए मी प्रमुगत पे। उस वमय कीवही दूषित मुगम राबनीति और रहमोवि पी। पादा सेनापठियों भाष पे । सेना प्रहास इससे भी तुप पा । उसे इस बात का इष मी पता न पा कि उसे क्या करना चाहिए । समारोपम पमा साना, छूर के मौके वाले पना, उनका प्रम था। बीते मोहारे, उने अपनी रंगरेक्षियों और निवार से मतमामाई के बल बाँसको में अपनी बान पाने और अपमी होने से बचने की दीपिण परते। उनम्न सनिक पर्म पा। अम्त में इस प्रकार सेनापपरय और रणनीतिमा परिणाम रोना पा नही हुमा। इससे या सेना सब वरफ से भारती दी गई।