पृष्ठ:आलमगीर.djvu/२२०

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सफेर-शाह गर एस व सोयरी। ये पोर पापीनी गरे। उसकी बनार मन मार दी। सराप जान पाठपापा में भाव से वागापार पेर। लाम-पीमे और पावरसता बीबी अनेक धने पी। ग्यप के मन में पापियोहारी, पोके, पारणे, गली, रमादि सैने म्या में एकवि थे। एक बार से भी प्रषित पानी र समय पत उपस्थित पे बिनमें मत से रमसाई ये मागे हुए मगोहे येन पोरपियन यात्रियों ने उसी समय में ग्राम माप हिपा। बीमार को जयप में से पाए। परन्त साप का माक्षिकम मोरे पोर पनवा पाये भोप राग पी रहारी पव योर रापा मचाते-मार-पीर, गाती- गुममारते और मम्व में पिना पैड दिए पसदेते थे। म उसमे इन पर तनिक मी सानोर स्पान रेमे से सर पर दिया। इस पर मेरिट मेमा- किन हमारे साप एक मरीज "हो मी मरेख किया ऐठरी-मरे मर गए, है। एब में सवार और मनसबदार मुजफिर ठारे। RAN "सेनि इम मी रसदार मुनारिख । "पर जमा भी थे। पर हम अपने पार पछेसमो, पारपरपोtart" "हम पानीका माग एस बोड़ा मर या। और हमारा मारमी हो" "मेरे पास मत एम मोर उसन पेपयी नियमा समे मित गुप। "हम मी पेद्यमी मेग्रेशमी "मपा उसमे एकमरेकी हीन वाot"