पृष्ठ:आलमगीर.djvu/२५०

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मुपदप्रकट मुबारको रखपता होर बता-“मुबारकबाद हजरत सलामत, असामुखिधार, करो क्लेर बसहामठी फवा मुबारक हो। लेकिन हुगर, पायो पाएँ कि ऐसे सवरनाक मौके पर, अम्मारी के सामान से गोसिप भोर वीर पार होरो, वने बड़े सपी पर मो सवार है। भगर सुवान पास्ता गुमार वीरों और गोलियों से कोई बिस्मे भाष वो हम लोगों ने तो मैं दिमाने सभी ठिकाना न रोगा। के वास्ते बाद उरिए और पोहे पर सपार होशीथिए । अब हाही सा, सिर्फ बाद मगोड़ों में पुस्ती और मुम्दी से छीपा करना और पौरखमेवगिरफ्धार करना । मैं वानवा किए सबक पा मगर वही मौत। बा औरसवेब बोरे से साथियों के साथ लाभाए और मेरे पासा मरिसाये के दस्ते प्रेम बिसे मैने प्रमी कमरमे से रोक रखा है, भाषा बोल दीपिए ।" गरीब दारा बिना सोचे-समझेगा मागे भूस कर पेठा और हामी से उतर कर पोहे पर सवार हो गया। पानही वानवा पासपी से नहीं उतर पारंपरिक रिस्तान के कम्त हाब से गैया रहा। ५४ दारा का पलायन पासाल राम और राममि पठोर की बहामना के लिए पायी वारी सेनाको दाहिनी ओर मुड़ना और मारी अपयेषम सामना मना पड़ा था। रातसम्मी और पामे बाली भाषामाही से सैनिक पक गए थे। वेष भूर में रम पोरने वाली प्रापि प्रा रही भी और बहती हुई रेत ठमकेमुर और प्रौद्यों में मर रही पी।पात हुम्मे के लिए एक मी पानी उनके पास न पा से समप यात्रा माम्मद असवान एक मजदूत रखा सिए दाय पर माक्रमण