पृष्ठ:आलमगीर.djvu/३१५

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मासमगीर पापी महापारेगा | स्मोकि उसे पर्यो मापने दीभिम बनाय पा। पर परा मे न माना और वनों के पहा पसा गया । दाग कोबीवन सा पाररपूर्वक पर से गया । चारी नादिरा पार दादर पहुँपते-पहुंचते ही मार्ग के क से मर गई। इस दास से वार पागल हो गया । उसने हर दिया और उसी वारा अपने मामा त्मिक गुरु मियों मीरप्रस्थान में गरमाने प्रेमाऔर मिना दिया इस समय ठहरे पापी मा गए पे, उनमें से प्रारमियों के उसमे अपने परममक गुल मुहम्मद श्री प्रापरवा में बेगम की ना की रक्षा करने के लिए मैव रिता और कहा रिया किनार से उनकी खा बाँब पि । पल पहना चाहे वो रमारे नाम । बीवनमाने समझा पाहिदाग सापसी फोब माती होगी। उसने उसे और उसके पो सिपाहियों के पादर-तस्पर से ठहरा | पर पप देखा कि उसके साप केवल दो-तीन गे ही प्रारमी है, दत्री नीपत पराफियों से मरे परों को देखकर बस गई। को दूरमार मे मा भी उसके पास सोपे, और मर मरमपर उसके विपाती पारपी उमेयहाँ से पाए थे। उसने एक दिन राव समय पहुन सहरोको पपा त्रिपा, और राजा कपए-पसे, प्रताप, सिरों के प्राभूषण श्रीन लिए और दाय और उसके पुत्र विपर शिर पर मामय दिपा । बियोने बाधा दी उन वसपारपार उतार दिया । फिर उन दोनों माम्यहीन बाप-बेये थे, दोनों शावादियों सहित पाप-पोर पापी पर मार पराया। एक परिकको मनी नसार र नो पीछे बैठा दिया और मासे होगप्रय भी पाप-पार दिना, साहना कोई मददगार पुराना पारे वो रगमक सिर पर सामना। इन प्रभर अपमानवना पवि से उसमे दोनों बार ये प्रेठा में मीरवापासपर पर दिछ।