पृष्ठ:आलमगीर.djvu/३१६

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1 ७२ रिल्ली के पासारों में साबन कोयी धूप थी। विनी के मात्रा में ही उत्तेजना २ची पी सतट सा दुकाने और बारबार बन्द होठे बासे ये । होय पर से उपर मागे पावे, यार में रह पाठार नबर प्रा से थे।बोया के पहले परस्पा पी पी और चारों मोर पसार गोपी। एकदिनी मृमती बमवी बननी चौक में बदीली भापही पी, मावासी दिलीप मा होमिनी न पी वित पर यासावा सबठा करता था। एक गम्दी भोर समित इपिनी वो मिस पर बहे रे में पगिया का गानर पुरान, मृगह समाप कार्वा दाग धौर उसप रामकुमार तिर सिमा बेटा मा पा की पाबुरेबल पन्द्रा साहौ। यो पीछ सम में ही वलबार लिए रेखाने का मसर गुलाम मर गरेठा पा। संहार के सबसे समर स्पराम्प के रचयिते में नवोदभमादी, नया मुद्यमिव होने पायव ही से मुसनित था। रहरे शरीर पर प्रवक्ता और सिर पर पर पगड़ी न बौ, बा भारत परशार पाना । रे पिता-पुत्र मोरे पो की मैली इसी बमझानी परमे थे, बो शाम सोमे नही दी गई थी और रिसे गरीब-से-पये मी तिी में पानना नही पदम समता पाए पनी और मामीनही पाणी उसके सिर पर मिपरी हुई। उसने का में गिर्ये पो दी। शय प्रम पोपे। 7 दिनो मुख मा पाचोर मया परमेरी पैसे पर थी। बाबन की चमचमाती पूर रनोलिय पर पड़ रही पौ।