पृष्ठ:आलमगीर.djvu/३२४

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शाची रवाना रोमा मेतिर अपरा-पोस पी होपिए सामा" "फिर शाहबारा, शेन शाहादा, हम वापिनार पातर, प्रा पुराय पासा उठाए" "हम बोध मही पिएंगे। "वो ख प्रावधान नहीं मिलेगा। मुराद और भी गुस्टार पोखरेपासेविए हुए गुलामो पार रेरा- "तुम सब नमनयम हो, पाता में दो गुनामो ने पाशा उसे रेरित । मुरारकापी रामावि उसे मयमट पी गरा। पर उठने पाखा का भोर मा- पापा कहाँ है" मगर दारोगा पमा नही, बसाया। उसने धीरे सेमा-"क मुहावी पाप माधव करने पाए "नये, मारणे दो महीं भाषा है। पार रस्सो, मैं सवान समित मापनमा "चीनी, मामाद वह सेपर के पेरे। मिसे माफमे बेगुनारामा गमा पा" मुगरम गुस्ता धारो पपा । उसमे मनमीत स्मा- "उनभयो प्रामे मार स्पा t" " बदहे में प्रारभ सिर मायमे मारे, विप्र शासी सम- मामा तम पहप चापपार हो पाइए।" प्रमी उपाव समात्र मी नही रेकी राय मसी सबपरोसे उसे चारों रिण से देरकर सोहो गये। दुराद गात् मायुको ममे रेख एपरम डमबहादसे पा। उसने हर उस भनी सर रोगी, पर शारी पारची वर एक सैबर मे पर उसपर सहबार भरते इए -या निप सेपद के खून प्रपना तार मोदे