पृष्ठ:आलमगीर.djvu/३५

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मालमपीर अन्वता उसने मौरचुमनाने दरबार में मुहा मेबा-ौर मरे पार में उसे पार से अपराम्दो, और उसे बड़ा देने की मनीरी। उस समय प्रम न समझ पा विनी-अपनी पाते नाम यहीं से पता प्रापा । परन्तु उसे अपनी प्रेमिन बेगम तपा मरम्मद अमीन सौ और अन्य मित्रों से पता लग गया कि पापयार सकी बानगाहो पाई और उसे तुरत पहा माग पाना दिए । लिए पागोराव यहाँ से भाग गया। इस पर शार मे हम्मद अमीन और उसके सब बाल-बचो प्रेदर सिरा। इस । मीरजुमला मे गोलकुण्डा यम्प विर्मस करने और वस्त घटने ठाननी। ठन दिनों शाहबारा औरणमेव पौरसाद में रावा बा, बो महाँ १५ दिन का रास्ता पा। भोरमेव की प्रायु उस समय रेषत ८वर्षीची पदचिराप्रपाभिम था । मौरजमक्षा ने पौरपयेब । एक लव हिला-बार का मरमून इस पर था- साये मासम, मैंने गोलमाकी पर पड़ी पड़ी लिदमते श्रीनि माम माना पानवारे और फिनके लिए उसे मेरा बहुत ही ममनून ना चाहिए । मगर इतने पर मो वा मेरे खान्दान भी पीपी में है। इसलिए मैं पापी पनार जेना और मापदुगर में बिरहाना पारवा और इस दरखास्त की सिफ्त के शुष्यने , विसकी पिबीया भी प्रापी पानिब से पामित उम्मीद, एक नस्मा अब परवा हूँ बितरे रिपे से पाप बमानी पापणा भर मिरफ्तार से उसके मुल पर मार सकते हैं। भाप रे मारेकी चाई पर एखबार और भरोग फरमाएँ । या प्रमार । महिम न तो कुछ मुरिपती होगी न च सतरनाक ही। बाम माप पर वीरा समारो के गप पाव पर मिला राष