पृष्ठ:आलमगीर.djvu/४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रासमगीर बाप पर पसीटते में से प्रापा । परन्तु पारी मेज म परमात का मुकाबिहारमे को हैवार हो गया । यार ने बरपा सुना तो उसमे शाहगारेको मुसा पर समझा-बुझार उष्टा विषा पातु महामवलो मे मिला मन में एला और समय परवरसिया। भोरंग पहपाठी होने के प्रदेश पर राय ने वनराके प्रधान पर दुमालों को पारेर मरमा गहा पा । या पीर पशिप मर में या मारी विनाम और राम मारी शुभचिन्तक पा। वारणा और साथ दरबार उसे प्रेम पता पा! भामेर के महारान बनिह यो चामीस पार सबा और रे साल परसों के समी मे, उन उसने मीरा का दिया था। जिससा माराम मे समय पर लिया। प:ो भार के पैसे की कामों से रिशर पाव से मोम पर उमरा उससे मनरी मन नागब रहते थे।पना होने पर भी पाठक बरबादादा प्रदाता पाउन प्रत्येरवाशा पासन पर और उन प्रविध और पान के सिम नही पाखापा। एक सिपाही ने छोपतामे पर बना दिया था। इस सिपाही पर अप होमेम कारण पहबा दिपक बार पर सद बागरे माल पर कर बोलने लगा, सिमे उसे पर निशाना बना दिया। एक बार उसने अपने उमगा और सेनापति में भाकि पारी पापुर पारी मार्य सपनव में दमय नहीं है। इस बात से सब लोग मेरए या नोंने इसमें अपना अपमान सममा। बमोविषिोभा स्थिती या उपसार में अनेक मोतिपी थे, उनमें रात से पदमाये। मारिनीकी पायो से