पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/१३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अालम-लि-1 थोरी यार है जुकछु थोरो सो में, ताकि आई, :.. ओरो-सो विलाइ कही खिन हो में सोहगो। धीरज अधार-ते रह्यो है - खंग' धार, जैसो : .: आँसुन की धार सो न धूरि है जु: धोइगो । पाहि सुनि आई औ न चाहि ताहि पाई फेरि, . देखि 'सेख' मजनूं- बिना. हो नोंद सांहगो । नोकै के..निहारि पाके बसननि झारि :डारि, तार तार ताकि कहूँ यार, सो जु- होहगो ॥२७३|| 11111....jug ....

.मगा .

___ - 11 लई छलु के हरि हेत. हला मिलई, नवला नव: कुंजनि माहा 'आलम' पाली-अकेली डरे हितवैपति जे पतियां वित माह मुखनाय भरे हग दीनतिया जल छोन में मीन मनो अकुलाह। चौकपर चितचे चल नीचहि डोलत ज्योपिय की परिछाई -सा = तजगर । - चापि देख पाया