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आलम-कलि
[ २७ ] ,
राति रँगी रतिरीतिहि में रसे ही रसे 'नीयक सारतिको
रुचिसो मुचिकै सुचि सैन करी अलि संग फली जनुमालतिकी
लित फूल हिये हरि के छिटके कवि 'आलम' या उपमा चिति की
सँचरी नभ रंधन के मग है निसि में मन ज्योति निसांपति की
एक समै सँग प्रानपिया जुरमे नंदलाल जंकहि जू
छलु कैयचली बग्वालंकी प्रालि दुरे बरनायक काहि जू
धार गही कंवरी' करते धरपुट देत निसंकहि जू
अहि के मुख से मानो लेतं छुड़ाई ज्यों गारुड मैन मयं कहि जू
सतपत्रके पनि सेज सजै मिलि सोचत कान्हर संग लली।
पिय की भुजतीय की प्रीयंगही तिय की भुज पोय की गीवरली
कपि 'पालमा अमरोमावलिके जगचौकी जराधको जोति भैलो
जुग जानु मुमेरुके वीचा मनो धरि धीर फलिंदीको धार चली
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