पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/१४३

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१२२ पालम फेलि , ' [ २६३ ] मजि सौज संयोग को भोगकला जुग मेज़ मिला गई सजनी कपि 'आलम' हास कैयास मिले मलयार्दिक ओर मुवास घनी कुच कुंकुम के कन अंकम मो.मल तन कान्ह के जोति यनी परसे जुग मेरनि सो मनु हैं लगी स्याम घटा तन हेम कनी [ २६४ ] हेमलना तन राधिके जू तन स्याम नढ़े दिन ही दिन यानी'. पनिसो यतियाँ जलपै हिनसोते सुने कयि पालम' प्रान हितानी हास बिलासनि दंतन में: छिटक छथि सो उपमा:जियानो मानो विधुतुद प्रासुसमै मुती आय कलानिधि मध्य समानी [ २६५ ] . नील निचोल निसा मह त्यो विंदु पैठत कंचुकी कुंभ अटारी बुध पिय वलय कालिमा कुच मैनु गई कर मुड़ जटारी 'अ.लम' या जुबतो श्रय दै नग्न रेग्य चलो त्रिभंगी हरिद्वारी मई रति सी रितु राति रगी रनि मानो हना हर काम कारी [ ४६ ] हरि कामी अमरति काम जिते सचुलेन पिया यनिता पर ते फयि 'थालेम' हन संकेत समै रसकलि कलोल - उभे भरते कुच उच्च में यक नखच्छा यो यरनो मनमोहन छ्य करते अति आरकता:सुक चंचुपुटी निकसी मना फंचन पिंजर ते • १-यानो रगत । २ विद राहु। . *इसका अर्थ हमारी समझ में नहीं भाया । हस्तलिखित प्रति में पाठ ऐसा ही है ।२-सचु-मुस । ३-प्रारकता-(भारता) पून लाच ~ ~ ~ - ~-