पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/१४६

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विपरात पनि [ ३०५ ] सजनी मिलि द्वै अवलोकि कह अतिही हरि राधिके के बस री सस्त्रि देखि धौं कुंज बिहार वह फबिधालमा और कहा रस री अँगिया सित झीनी फुलेल मलो तरको ठौर ठोर कसी कसरी किधी प्रात सुमेरु के घोस भयो जितही तितोस मनो पसरी [ ३०६ ] मात समधन योथिनि मैं निराइक-नागरि.नारि निमेखें पालम मालस-मपन अंग रह्यो लगि-भावतो. भामिनि भेम्वं कंचुकी लाल कछू.मसको कुचसीप को ओर चलो :सखि देखें पात रतोपल के नरके प्रगटी मानो पुंज पराग की रेखें [ ३० ] स्याम,असंक मयंक मुखी निरखे रति औ रतिनायक हारें पालम कुंकुम के रंग की गिया अंग में छवि फोटिक धार . मसकी कुव कोर की ओर लसैम.कहा उपगा फपि और बिचारें युड़त चंचुपुटी प्रगटी. वक्षया मानो पीत परागहि दारे सरको = मस गई है। रातोपत (रत्तोलन ) लाल कमल । ३-तरके फटने से : : • ", : ; .'