पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/१४९

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पालम केलि ' [ ३१५ ] सुर ज्ञान जु.ध्यान मुनिन्दनि,कै घरन्यो- असकंध दुआट्स में कवि 'बालमा गग्य: प्रेम-प्रताप सुतौ ग्रज नारि फियो बस में नि कुंडल माल औ भूपन भूपित किकिनि मुद्रिक सैन समें तन कान्ह कियो मनि जोति मनो जमुना जल सूरज की रसमै. . [ ३१६: ] कछनी कटि स्वछ कछे-पवनी यरही घर पुछ को गुछ बनो वन राजत श्री.मुरली धर-जो धुनि सो.दिन अनँद होत चनो हिरदै भगु चर्ण को चिन्ह लस उपमा कयि बालम' कौन गनो प्रगटे सुअनंग प्रसंग लगे छयि सुन्दर, अंग के अंक मनो [३१७ ], मधुदंदन: श्री : नंद-नन्दन जू, दुखकंदन 'चंदन स्वौर करी तुलसो.दल माल बिसाल लस निरस्ने छयि कामको कान्ति हरो कवि 'पालमा भालके ऊरघ यो उपमा सिखि-चंदकी पंतिधरी सुखमा के समूह सरोवर में मानौ फैलि फुलेल को छीट परी. [ ३१ ] अंग त्रिभंग किये. मनमोहन ते. मन ,काम के.कोटि हरे चित,चाहि चुभ्यो वृपमान मुता तन मांसुरो आँगुरिगैन धरै चंचल चारु-चले कर.पल्लव 'पालम' नेकु न नैन टरें तजि रोस मुचारु सुधा कर पै:मनो नीरज के दल निर्त्त करें १. रसम (ररिप ) किरणें । , .