पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/१५१

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। .१३० सियालम केलि [ ३२३ ] . उलमे'तुलसी दल मंजु लसैं सुलसे कुल से संग मोल रसालहिं नौ दुम में कदम-दुम फूल फनी घुघची फल सो फल जालाहिं 'पालमा डार मुडारनि छोरनि नीरज नील लये सँग नालाहि मैन पिसेपत लेखि महासुतीदेखि सखो घनस्याम तमालहि [ ३२४ ] . सबिरी नम सिंधु दुरन्त रये गुन परन सो जग जागत है कवि 'पालमा नील कहै सय ताहि सु तो अगमै मन लागत है सुख दायक कान्ह पगफम 'सो नर जद्यपि यो अनुगगत है लम्बि जात नहीं युधिशाना लोंताते लोगह स्याम से लागत है , . [ ३२५ ] आवत जात ते यहि मारग डीठि परै कहुँ साँझ सबारे ताहि ते लोचन लेत भरिभ्भरि लोचत लोचन लाल तिहारे अटान चढे उत्तर कवि 'आलम' झाँकत दौरि झरोखनि द्वारे पान पान मुहाइ पछू न अन्दाय न' नारि रहे मनु मारे [ ३२६ } , धृत कुंडल गंड प्रचंड कला सिर मंडि सिखंडिनि के चॅदवा मुरली धुनि को मुरलीसुनि के मुर सों मन आतुरको फंदवा सुसमूल बिलोकत ही मकरध्वज भूलि रह्यो मति को मँदया कषिपालम'यानंद चन्द सदा सखि वा लजिरी नंद कोनदया १-उसमे = उसित । २-सु-रलो रेलापेल ( अपिस्ता)