पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/१५४

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[ ३३३ ] जिमानमुगरिपैनारियली कवि आलमालोल कलिन्दीफे तोरहि दार हिये हरये पग धारि दिपै द्विज पंति हरे धषि हीरहि मुज डोलत योलत मंद गतीफर पालय चार लये छवि धीरदि' फोस पिदारत भ्रम सोनिकस दल फज गहे मनु फीरहि [ ३३४ ] सुधा को समह ता में दुरे है नछन किधी, कुंद की कलो की पानिपनि पीनि घरी है।' - 'बालम' कहै हो ऐन दामिनी के पये योजु, यारिज के मध्य मानो मोतिन की लरी है। • . स्वातिक की धुंदै यिय विहम में यासु लीन्हो.... . __ताको छवि देखि मति मोहन . यिसरी है-1.. तेरे हँसे रदन किशोरी दुति राजत है... ___होरनि की खानि ससि मध्य है निकरी है। [ ३३५ ] से कियो मान मनायत ही मनमोहन जामिनि जागि' गये अजहं रही मौन अनम्मनि है मन ही मन नीचाहि नैन नये तरुनी अरुनी रचि प्राची दिसा फयि 'आलम' उपमा ये जुठये तम मास को भान महीप चट्यो तँयुआ तकि तानि उतंग दये १-चोरहिं पान का चोड़ा। K wwmvwww-down-