पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/१५६

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मानवएनि A [ ३४० ] पोय पयान. की पावत चाह भये सुपयान को प्रान उतालें याँसु औ साँस उसाँसनि दैरति प्रासनि साल वियोग के साले 'बालम' अंग अनंग की ज्वाल ते आंगनु भौन फुनिङ्ग से चाल ज्यो जिय को ढिग आवत जानि परै जमराज को जीत के लाले [ ३४१ ] कान्ह चली यिलँयो. न कहूँ सजनी जुगवै अब लौ अयले कवि पालम'.व्याकुल नैन वियोग अरी विरहानल देह दले सुश्रा भरि डार उसाँसनि सी झलकै तन कंपत होय हलै • सरजात की बूंद थपैरसमै छवि लोल मनो जल डोल चले [ ३४२ ] जो झरिह भरिहें घट ती घट है न घटै अखियाँ उनई हैं' नीद गई निमपौ बिसरी कल में पल में पलको न दई है 'आलम' औधि की ओल अली अबलो इन घाँसुनि साँस लई है. पानिप डीठि सकेलि सयै चरिफै पुतरी भर.मार नई है [ ३४३ ] कान्ह पयान कह्यो सजनी तिय प्रान पयान फे से दुख पाये 'आलम' छीन परी मुरछाइ परी छिति नीर सखी मुख.ना सीतल हे पग पानि गये छतिया तपिक पियरी तन छावै जोह की जानि परै न कछू सखि देखत हूं जमह मम आपै 'आलमा निमपी बिसा यर है न