पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/१६३

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१४२ आलम कोलि [ ३६४ ] चारु तमाल प्रसून लता किधों स्याम घटा सँग विज्जुल गोरी मधुपावलि कंज की माल मनो छवि पारम कंचन खेम की जोरी मरतिवंत समुद्र समीप दिपै यड़यागि सिखा फछु थोरी जो चलि 'आलम' नीके लखी तो पैनन्दलला वृपमान किसोरी [ ३६५ ] गुन रूप निधान विचित्र वधू हित प्यारी पिया मधुगंजन की कवि 'बालम' पूरन काम समीप सुदेह दिपै दुति मंजन की कर पल्लव फज्जल सोंग छोरनि रेख रचै पति अंजन की लिखनी दल मंजुल कंजको मन ले चंचु सँवारत खंजन की [ ३६६ घ्रज संपति. दंपति राजत है धन देखत रीमि अनंग गता कवि " आलम " संग सुगंध सम अंग अंग अनंग सुगंधरता मरि भेटत भामिनि भेटनि मैं भुज द्वे छपि पायति कोटि सता मनो मंजुल लोल तमाल में नौतन चार चढ़ी फलधौत लता पाम दितू ग्रजराज प्रिया यनि के विहरें धन निम्रम में फयि 'पालमा एकहि कोक, पढ़ें अति दंपति एक पदिकम' में लानना फल फाँति फलेवर का झलके हरि के हृदयाघ्रम में , wormirmirmannermommmmmmmmmmmmmmm.m...mmmmmmmm १- जपात:सोना। २-यहिग्न = (ययक्रम ) प्रस्था।