पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/१६४

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... पृन्द पनि के योच जगै नय नेह लगें उमग्यो तन आधे चार को चाउ खरे चपले कछु लाजनि नैन सो नैन दुरावै 'बालम' है इत लाल लटू निरखै इकही टक योच न पाये यो लपटे पल में पुतरी चितवै पिय को मुख डीठि पचाये [ ३६४ ] संक तजे वृषमानु सुता जमुना महँ न्हात मई छथि भारी पपु राजत चार विटन किये जनु हेम लता कनकावलि धारी हरे हरे आ गए. हरि हेरि सखीनि के ओझल है गई प्यारी घारि मैं नारिदुरायति है कुच कोक मानो विधि' यूसकी सारी [ ३७० ] कुंज को भोट कलिन्द-सुता तह मोड़त राधिका संग कन्हाई पोदि प्रजंक सुथंक 'मिलै सँग अंग लसै अति मंजुलताई रंधनि है निरस.सजनी भनि 'पालमा यो उपमा मन आई नि बरै सरि पारसयों झलकै जल मैं जनु पापक माँई -विवि दो। १.पारसDपाय ) निकट ।