पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/१७३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२५२ सालम कलि ". . ( ३६७ ) ...। मेजु सुखासन . हेम होर पट चीर , यिविधि पर, निरखि निरखि मन मुदित होत निज सुख संपति पर । श्रापु बनै वनिता बनाइ पिलसन बिलास अनि, जग रक्षक जगदीस लो जु भूल्यो जु अलप मति । अजहूँ सँभारि 'पालम' सुकवि, जो लो अन्तक नहिं अस्यो, पग डगमगांत हेरत हँसत, विरह भुभंगम को इस्यो। । इतिश्री थालमकृत अालम केलि समाप्तम् ।