पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/२०

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। वयः संधि-वर्णन वयःसंधि-वर्णन। ... फशर को सी कोर नैना भोरनि अरुन भई, कीधी चपी सीय२ चपलाई ठहराति है ।' भोहन चदति डोठि नीचे को ढरनि लागी; डोठि परे पीठि दै सकुचि मुसकाति है। सजनी की सीख फछू सुनो अनसुनी करे, साजन की बातें मुनि लाजन समाति है ।। रुप की उमँग तरुनाईको उठाव नयो, छाती उठि भाई लरिफाई उठी जात है ॥१०॥ । जुटि आई भौहें मुरि,चढ़ी हैं उचौह, नैना मैन मद माते पलकन चपलई है। फटि गई टिपे सिमटि माई छाती ठौर, • दौर ते सँवारी देह और फछु भई है । बालम उमँगि · रूप सोना सरवर भयो, . . . पानिप ते काई लरिकाई मिटि गई है। झलक सी भई पियरस पियरई किधी, ...

कछु तरनई अर, नई अरुनई - 'हे ॥११॥

१-कंग को....."अहन भई% नेत्रों के कोनों में कुछ कुछ कमलदल को पोरों की सी सालिमा धा चली है। २-चपी सोय ...""ठहराति है: पंच । लवा की सीमा सीप दी गई है। ३-दौर-दंग। ..