पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/२१

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पालम लिन काँधे ही। कँधेलो अलवेलोपनो खेलो चाहे, पाछे ही विसारे खेल भाई देसै कृप फो। सावकी कुरंगी की सी संध्या को मयंकु जैसे, लाँक विनु डोले औ' निसंकसीत धूप की। आलम झुकति थोरी. हँसे ते हसति पुनि, हरत :हरीको- मर्नु आनन अनूप की । चंदन चखोडा भाल गोरे अंग आँगीलाल, पूछे ते पिछड़ी जाति मौड़ी ओंडी रूप की ॥१२॥ .: नवोदा वर्णन ...... फोनी चाही चाहिली नवोदा एकै घोर तुम, . ' ...एक चार जाय ;तिहि. छलु डर दीजिये । ."संस' कही श्रावन सुहेली सेज आधै लाल. .. । सीसत. सिखैगी मेरी सीख सनि लीजिये। श्रावन को नाम मुनि सावन, किये है नैना, :...

श्रावन ; कहै सुकैसे आई: जाइ छीजिये।

परवस बसि करिये को मेरो यसु नाहि, - ...ऐसी यस कहीं कान्ह कैसे बस कीजिये ॥१३॥ १-निसारे-त्रिपपररा (बाल .. ~मुकति खीझती है। बसोड़ा = तिडक। चाहिनी-चाद्द करनवानी।।५-याइ यायु ।