पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/२२

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जोति सी हिये में जागी मैंतो जानी जैसी लागी, , सोच तेहिये में लाल ! लागी नारि है नई । रसहि न जाने कहे पिरह न मानताको, .. लेही छयि छायः छ मरि मोहनी मई। 'बालम' रसाल नन्दलाल सुनि जानि-मनि मोहि ऐसी फठिन सुदुहूँ दिसि की भई । तुम रिझवार प्रेमापीर पियराने' कहूँ, अंकम को संक मुनि प्रियां पीरी है गई ॥१४॥ फोकिल किलक धानी मुनि मुनि शनि मानी, यही जानि तोपै सीखि सुरहिं सुधास्यो है । सनकी पानी ताकि पाक उजार गयो, . यह चेति चित. ते भारनि उतारा है। 'पालम' कहे हो पूरो पुन्य को सुहायो फोल, मुख, की निकाई हेरि हिमफर हाम्रो । कप रयो भयो नाही रीझि गयो मन माही, तो पर है मार आपा-यारि फेरि डाखो है ॥५॥ पौन फे परस छ-घंटिका के डोले डोले, ... हार नहिये धरै खरी.फटि खीनी है। घेनी की लटक जिनि प्रीया के लरक जाय,.." छुटो अलकनि छविकाफी लूटि लीनी है । -हिये ... नई - गर्दने मुककर हदयसे जग गई। -मारि गरम । ३-जानिमनि ज्ञानी शिरोमणि ४-मानो-(धर्ण) रग। (मोट)'सायमी' में भी इस शब्द कोसी भय में लिया है।