पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

फुली सुजुन्हाई कुसुमाकर' की रैन की ओ, . . फूल्यो यन घन रसपीधिन विहरि लै । आलम सुभग ये सुभायन की सोभा तन, । भामा मिलि. कोटि कोटि श्राभरनु करिले । मंजन के आदि ते घे न्यारे है सिंगार हार, अंजन को रेख ग खंजनु- मैं धरिले । चन्द्रमा-लिलाटी तेऽब पती कहा ठाढ़ी वेगि, . पाटी पारि प्यारी फम्नाटी चीर करि लै ॥३३॥ सेत संख यिधु मोति अंजन जहर सजि, . ___यक' धनुः अरुन. मुमति सँग लाए हैं । पेम सुग. सूधे धेनु सुन्दर : समान ,रमा. 'सालमा चपल हय काम के सघाए हैं। मोति मधु पूतरी कलप लच्छी पूरन, धनंतर सुदिष्टि गज़ गतिः पलटाए है। फाई को समुद्र मथि देवतान थम 'कीनो, चौदह रतन तिय नैननि मैं पाए हैं ॥३॥ प्रीति मर मुनिधि देवतान में पाए जानति :हैं. नीके . रति · रतन जतन जेती, .. याते रहिनि हूं के तेजहि त है । श्रयेरो के । आई है सबेरो यन नेरो यह · . .... मेरो पह्यो किये कहौ तेरो कहा है । . १-कुसुमाकर-घरांत । २-वन-तिरछे कटान । ३-मधु-श्ररत। नेव चौरद रस निसलाये गये हैं। पह कमाल ; इमी कपिने दिखलाया है।