पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/३८

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२३ अंक भरि लीन्ही परजंकीपरपौदि,तय, : -

सपनो समुझि चारि अखियाँ. भरति है।

बिरही ही भारी सुधि अजान सँभारी श्रेय,. - • . तुम जानो प्यारी हमाल्यारी. है रहति है। प्यारी पिय दोऊ पहिली ही पहिचानि भये, मानः जनु पाये ज्यों ज्यों राति नियराति है। " 'पालमा 'सकुचि लग-लोगनि' को लागी रहै, . दुरि दुरि देखें डीठि फैसे के अधाति है। लाज ह की ठौर तिहि और है सचेत 'इत, ..! । कोर हूँ सो जोरि नैन संखी मुसकाति है। याँधति गंचलनि वीच मनु मानो चलि, .. • चिकने से नेह गाँठि छूटि छूटिं जाति है॥५३॥ सरद "उज्यारी' निसिसीतल समीर धीर, सोचत पियारी पियः पाये सुख सैन । 'घालमा सुकविः आगे जानें घे रसाल लाल, बालहि जगावें लगे लोभ वाल-चैन के। चिलक सरीर रोमराजी राजे पिय पानि, पल्लव उठे हैं जैसे चंदन में चैन के। सकुची पनचरे उतरे ते चाँप चार सोहै, घरे विचित्र मानी पाँचों यान मैन के ॥५४॥ १-लग-जोगनि निकटस्थनन । ३-सकुची पनय सिकुड़ी हुई प्रत्यंचा। २८८