पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/४१

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आलम फोलि जयहीं तू देखी ग्यारि वारि-वांसुरी यिसारि, तनु मनु मोहि भयो 'मही दुखदाई है। कछु न. सोहाय पै उसासंनि विहाय दिन, । चाही की 'सुरति वित हित सो हिताई है। 'पालमा कहै हो। पर पीर की हरेनहारिक !" , चितु की कहानी:मुसुकानि हो मैं भाई है। तेरे तो पवन मेरे मान के अधार हैरी, हा हा कहि कैसे कैसे समाचार ल्याई है, ५ ॥ कान झाँकी कौर लागि गोरी गोरी जैसी प्रागि, . तबही तें आँखिन में प्रागि सी धरति है। प्रांजे नैन खाये पान होरा जरी चौरें। कान ? 11 दसन को जोति छवि हीरा की हरति है। ज्यो गई लगाइ , नहुयैटो है। मुलाय गेहु. ! } - ऐठी मोहै। देखि देह ऐठियः परति है। मनु खोय पैनी भई पांजरंनि येधि गई' 1' फाजर की रेन 'उरे 'जाजर४ करति है ।। ६०॥ कुसभी, पहिरहिये, कुसमाको हार गथे, . केसरि कुसुम लखि लागै ग दूत री। अथराते५ आयो आछे चच्छु यि छोरनिली, · - । - बाछी पाली-काही ऑगी उरज अछूत । १-हिताई यांनी लगी है। -कोरे लागिहार के एक पासे से लगकर । २-और दार। ४-जागर -छेददार (जरित) --प्रवरा मारा।'