पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/४५

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2 - - आलम-लि- " कहि फगि 'पालम' जगमगत' अंग वाफे,

रवि के किरनि मिलि कदली को दलुहै। .

चाँद सो चमकि उठो दामिनी सी चमकति :

. व्रज की भामिनी निधी रंभा कोनो छत्तु है।

रूप की निकाई देखि हो तो भाई धाई कान्ह, ऐसी जुवती के पाएँ जीतयः,को फल है i६॥ सची..को सरूप लैके सुन्दर सरोज पानि, ... , · सोमा सानि साँचे भरिससि ह समेत की । जोयन की. जोति अझ मैना की तरंग तैसी,:- सोने की सलाका जानु फैली फूलि केतकी । कहै कवि 'बालम' करति नित चालि प्रालि ,, * फैसे जाति घरनी हरनि: हरि चेत की। सादे मोती कंठ सोहैं पंच रङ्ग अङ्ग चारु, . - सुरंग तरोटा सोहै सारी सार संत की ||७०11 सारी सेत सोहै नख नूपुर की आमा सेत, ' चंद मुख. धारे अंग चाँदनी सी बन्द की। उरज उतंग मानो', उमँगो. धनंग 'श्रावै. ' फसि बैठी नाँगी उर गाढ़ी जरीचन्द की । १-दलु गाभा । २-रंभा - इसी नाग की अप्सरा । ३~-जीतर = जीयन, जिंदगी । ४-चालि= चालबाजी। ५-तोटा पतग (अंतरपट) वारीक साड़ी से नीचे पहनने का कपड़ा।. ..