पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

। ४१ - प्यारी पै पठावत न मेरी पीर पावत हौ, । .... प्यारी तो तिहारी पिय तुम ही पत्याति है। देह काँपै देखें द्वार गेह' छाँडि एती यार . ___मिहरी' की जाति कोऊ दिहरी ली जाति हैng५॥ जाकी यांत रात कही सो मैं जात आजु लही; . ___मो तन तिरोछे 'हँसि हेरि सुख दिया है। - ऐसे देखी.आन कोऊ सो न देखी पान तुम, वाके देखें मानस मरू कै कोऊ जियो है । कै तो कहूँ बोधो उर वेधिवे' को ठौर नहीं,..." ____ 'सेख' ऐसो रावर कठोर मन किया है। पीरो नहीं प्रेम पीर सीरोन सिथिल भयो, । . ।। चीरो नहीं चितु यासुःहीरो है कि हियो है ॥६॥ ', मोती कैसी दरनि दरकि प्राचैः नेता नेकु, तुमे ढौरी' लागी जानौ गौरीढरि आई है। . . 'सेखा भनिताको हाय हाय करौं पाय परौं, आय चाय ऐसी जीय कैसे फरि आई है । नेहु नही मैननि सनेहु “नहीं . मन माहि :: देह नहीं बिकल वियोग 'जरि • आई है। झूठे.ही कहतुं परचेस मखो जातु हो सु,'... .: पर: वस:.नहीं: यरेयस वरिप्राई:, है MEn "१-मिहरीबो । २-धान = प्रानमान । -३-मरू. के- — मुशकिल से। -नीपो-अटका है। ५-दौरीचानि, पादत।