पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/५९

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बालम-कोलिT" डारे सोरो नीर होतिघीय ज्यों प्रयल ज्याला महर महर: सिर, पाँह . भभकति है। एक अधार बांके हिये, है रहतः मान, ___घाटका लगायें मगु कुंज की तकति है ॥१०॥ तीर सो लगै समीर ससि सों कहति सुर, : विपु घनसार भयो सारी भई सारसी। 'पालमा अनंग दाह कोनो हैं श्रदाह तन, अंगना के अंग अंग पनि अँगारसी । दुखनि अडार लाय'सुखनि बिडार जाय,..." मारि मैन डारि दीनी पीरी पोरी डार सी ! . अजहूं ली पाय धारि तोपि लीजै पोषि-नादि, .. सोचही के लोक सूखी जैसे' जलधार'सी ॥१०३१ ताती होति छाती छिनु जूड़ियो है जाति कछू, . ताती सीरी राती पीरी वृझि न परति है। 'पालमा कहै हो कान्ह कौन विथा जानों वाकी, मौन भई काहू की न फोनि ह करति है। अागि सीझवाति है जू ओरोसी विलाति है जू," .' चिनु ह'न देखे सुधि बुधि विसरति है। सुवनि भीजै नौ पसीजै त्यो त्यो छोज पाल, ' सोने ऐसी लोनी देह खोन ज्यो गरति है ॥१०४॥ १-त्राटक-टकटकी। २--सार-लोहा । -प्रसाद% (भाग्य) पूर्वरीति से दग्ध। ४-डार समूह । ५-मवाति = मुमतो है।