पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/९१

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७४ घालस-केलि. अधर ललित लाल माल लाल पाग, लोल, लाल लाल नैना लाल लालची गुलाल से ॥१७॥ पैन हरि कहे मुरझार सैन, रही थकि, . गैन' ही में नैन उरमार के रिझे गये। और ही के भोरे माये भोर मेरे भौन फान्ह, __झाँके पीरे सीरे तनु तातो करिते गये । रैनि अप आई सुनि सजनी न लागै पल, . रजनी के जागे दिन रैन ,जाग दे गये । खुले पल कोरनि ते तामरस भोर ऐसे, : . आपुन उनीदे आये मेरी नीद ले गये ।।१७६१ प्रेम-कथन मली कीनी भावते जू पाय धारे यहि खोगि, . । . अनत सिधारे कि यसत याही पुर हो। ग्यारि का गोविकै धयो है सब गुनी जानि, •ौगुन न जानी तुम तयनि के गुर हो। -rrr ..........www.rrrrrrrrrrr...…..... १-गैन = (गति) चाल । NNN