पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/९२

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'पालम' कहै हो चख चाहि चिंतु चोरि लीनो,' . नीकी चतुराई कीनी मले जु चतुर हो । निकट रहत तुम एती निठुराई गही, • अब हम जाने काह निपट निठुर हो ॥१७७n जो है जानतु जेजे अनदेखें दुख होत, जमुना ते आयत' ही जात देखे जव ते । "भौनु में सुहातु है उसाँसन यिहात दिन, ___रतिपति अगिनि दहति तन तय ते । 'पालम' कहै हो प्यारे.काह की तो पीर बूझो,' दूर ही ते यदन दिखेबो कीजै अव ते । ऊँचे चितवत नाही नीचे मुसक्यात जात, 'ऐसी निठुराई कान्ह' कोने चदी कय ते ॥१७॥ आवत परेखो जहाँ जीये की न जाने कोऊ, जरी ऐसो उजु तहाँ कैसे करि रहिये,। 'कालिंदी के कल तकि कोटिसूल मुलं भई. . र मुरली को धुनि छिन सुनिये न सहिये । 'आलम फहै हो फुलकोनि गई जाति हुई, बिरह विकल भई कौली या बहिये। कासों कहाँ कहे कोऊं पीरोन पँटावै ताते,.' चुप ही भली है कान्ह कछुचै न कहिये ॥१६॥ . . . १-परेतो = खेद ।