पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/९७

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TO थालम-केलि . नीची डोठि श्रापु क्यों हूँ ऐसे है दिखैये,जू पै, . . . फैसे हू न देख्यो. जाय 'जेतो सोचुः करिये । मुरली की धुनि मुनि द्वार उझकन काज, मन.के चलत. तन: हो में : काँपिडरिये । लाजनि की भीर पल पेंडोऊ न पाधैं नैन, . 'सेख'. धीरे :सफुचि विचारि पाँच. धरिये । कीजै.कहा:कान्हरफनोड़ो' है के जीवो नाही, ना. तो, एक यासोमें उसाँस लै लै मरिये ॥१०॥ . .. .वंशी सुरं पाये सिर धुनि रहे सब सुर मुनि, नर खग गन पल टारे ना. टरत है। 'श्रालमासकले । तान-पान मृग मीन वेधे, ताह के हिये में 'जाया धोई करत हैं। ' बरही..-"मुकुट: यंशीधर · धनमाल यह, '; याँसुरी सयद मुनि पंगु है परत है। समुभि सनेही भये सेहो किते तेही छिन, ' ' ..., नेकु न विदेही और , देही सो उरत हैं ॥१९१७ १-झकना=माफ फर देखना। २-पंडों = राम्ता । ३ नोडा एहसान से दया हुश। --मेटी स्यादी नामक जंतु। ...,