पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/९९

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1 थालम फेलिका औरनि की भोले अब योलिहीन रोवरे सों, डोलिये न साथ हियो हेरेई हेरीतु है। जीजे विनु बातो चित रातो रातो कीज, नैननिर को नातो पैन हाती किया जातु है ॥१६४ डगरी दै "जाहिं नट नांगर चतुर कथि, 'बालम' बसेरो दरिया पुरयारित है। ली दधि पीजै जान दीजे और कोज कोज, सीम ते, पसीजे.तनु भीजे पट चारि है। जो रस विचाखो तुम सो रस ने जान हम गोरस लपेटो' सर्व: गूजरी: गँवारि है । जैसे तुम' आछे हौ छवीले छैल तैसी और,.. ' पाछी पाछी पाछे भावे रीझो रिझवारि है ॥१६॥ धौरी श्रावै धौरी कह धूमरी धूमरि आवै, . ऊँची के के छनि बोलावै लाल जाहिने । मेढ़ी फैरी कांजरी पियरि यौरी भूरी चारु, यलही मैंजीटी वन बेला अगाहिन । मध्य सोहैं स्याम धर धूसरित भूरी भौहैं, . वलि चलि 'सेख' उपमा में देउँ: काहिने । गोविंद को मनु कटू गायन में रमिरहो, ' सागवाय पाछे गाय, गाय बाय दाहिने ।।१६६॥ १-योन = पदरो में। नैनन... है = देखना ना न रोका जा माना। ३-गरो-मार्ग। ४-जारिन मिसको। ५-भागादिन नानार। ६- कादिन-विसनी(पंजावी दंग के गप हैं) ' - - ..