पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१०

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संयोगिनिस्वयम्बर। वैठि सिंहासन पर राजागे दहिने लिये ढाल तलवार ५३ बैठे क्षत्रिय निज निज श्रासन मनमें रामचन्द्र को ध्याय ।। हाथ जोरिक मन्त्री बोल्यो वो महराज कनउजी राय ५४ देश देश के राजा आये एक न अयो पिथौराराय ।। सुनिक वातें ये मन्त्री की जल्दी हुकुम दीन फर्माय ५५ मुरति वनावो तुम कपड़ा की भीतर पैरा देव भराय॥ जहाँ उतारे जूता जावें तहँ पर खड़ा देव करवाय ५६ हुकुम पायकै महराजा को मन्त्री कीन तैसही जाय ॥ मुरति पिथौरा की बनवायो तहपर खड़ा दीन करखाय ५७ बैठक बैठे सब राजा तहँ आपो गयो चदेलाराय॥ बाजन बाजे चौगिर्दाते हाहाकार शब्दगा छाय ५८ सजिगाकनउजत्यहिओसरमाँ शोभा कही बूत ना जाय । बन्दनवारे घर घर बाँधे घर घर रहे पताकालाय ५६ सजी सुहगिलें चौगिर्दा ते गावे गीत मंगलाचार ॥ त्यही समइया त्यहि औसरमाँ बोल्यो कनउजका सरदार ६० जल्दी लावो संयोगिनि को साइति आयगई नगच्याय ॥ हुकुमपायकै महराजा का चकरन खबरि जनाई जाय ६१ खबरि पायकै संयोगिनि फिरि महलन तुरत भई हुशियार ॥ औ बुलवायो फिरि बँदियनको सोलह करनलागि श्रृंगार ६२ सवैया ॥ मज्जन चीरे औ कुण्डैल अंजन नाकमें मौक्तिक बेससवारी। कंचुंकि औ क्षुदीवलि कंकर्ष कुसुमित अम्बर चन्दैनधारी ॥ खायकै पनि औ धारिमणीनको हॉर औ नूपुर की झनकारी। सिंढेरै भाल विशाल लखे ललितेमनलज्जितमन्मथनारी ६३